Sunday, July 25, 2010

हमारे भाई शेष जी...

लखनऊ से इलाहाबाद के बीच चलनेवाली आरपी (रायबरेली-प्रतापगढ़) से इलाहाबाद में पहला कदम रखा. पहले ये ट्रेन रायबरेली से प्रतापगढ़ के बीच चलती थी. लेकिन बाद में इसे लखनऊ से इलाहाबाद कर दिया गया. लेकिन इसका नाम लोगों के मन में आरपी ही रचा-बसा रहा. रायबरेली और प्रतापगढ़ या यूं कहे कि ज्यादातर इस पर बैठनेवाले लोग इसे आरपी के नाम से ही जानते हैं. प्रयाग स्टेशन से उतरकर सीधा यूनिवर्सिटी पहुंचा. कल्याण सिंह के जमाने में इंटरमीडिएट किया था. सो खुद पर फक्र हो रहा था. घर से तरह-तरह के निर्देश कि कैसे जाना है. किस तरह से लोगों से पेश आना है. खैर ये सब तो रही शुरुआती दौर की बात. अब जिक्र करते हैं उस शख्सियत का जिसका हमारे जीवन में खासा महत्व है. जिसने हमें धैर्य धारण करना सिखाया. अगर मुंह पर चद्दर तान के सो जाए. तो कोई माई का लाल नहीं है. जो उसे जगा सके. जबतक कि उसकी इच्छा नहीं हो. मामा जी के रिफरेंस से शेष भाई से पहली मुलाकात स्टेनली रोड पर हुई. वो तैयार होकर किसी साथी के साथ बाहर जाने को तैयार हो रहे थे. जाना था अताउल्ला खान के दर्द भरे गीतों की कैसेट लेने, जो उस समय पूरे देश में तहलका मचाए हुए थे. तरह-तरह की चर्चाएं भी फैली थी. इस पाकिस्तानी गायक के बारे में. लगभग हर गीत-संगीत सुननेवाला उनका मुरीद था उस समय और इससे फायदा टी-सीरीज कंपनी को हो रहा था. जिसके कर्ता धर्ता गुलशन कुमार को अताउल्ला खान को सामने लाने का महान काम किया था. रोज सैकड़ों-हजारों कैसेट बिक रहे थे. इसका एक और कारण भी था. टी-सीरीज के कैसेट अन्य कंपनियों के कैसेटों से काफी सस्से थे. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि कैसटीय संगीत का दरवाजा आम लोगों के लिए खुल रहा था उस समय. क्योंकि इससे पहले कैसेट के दाम इतना होता था कि आम लोग चाह कर भी नहीं खरीद पाते थे या कम ही खरीद पाते थे.
शेष भाई के साथ सामान रखने के तुरंत बाद निकल लिया. रास्ते में बात होती रही और वो हमारे बारे में पूरी पड़ताल करते रहे. कैसेट और हरी सब्जी की खरीदारी हुई. कमरे पर आकर खाने का इंतजाम होने लगा. इसी दौरान शेष भाई ने कहा कि गांव से आए हो और परचित भी हो. इसलिए तुमसे एक महीने का किराया नहीं लूंगा साथ रहो और खूब मेहनत करके पढ़ो. इसी बीच शेष भाई का कार्यक्रम अपने भाई साहब के यहां जाने का हो गया. जो उस समय नैनीताल के रामनगर में बड़े सरकारी ओहदे पर तैनात थे. गर्मी का मौसम था. सो पहाड़ की वादियों का लुत्फ उठाने के लिए बैग एंड बैगेज के साथ शेष भाई पहाड़ के लिए रवाना हो गए. रह गया मैं गर्मी से तड़पने के लिए. लेकिन मन में ललक था और साथ था शेष भाई का टेप रिकार्डर और अता उल्लाखान के कैसेट जिन्हें सुनकर दिन गुजरने लगे. पांच दिन की बात कहकर शेष भाई को गए पंद्रह दिन से ज्यादा बीत गया था. अकेले कमरे पर भी मन लगना बंद हो गया था. सो एक दिन सोचा की रात दस बजे के बाद भाई को फोन करता था. दस बजे के बाद STD का पल्स रेट उस समय एक चौथाई हो जाया करता था. लंबी लाइन लगाकर फोन मिलाया. कई बार की कोशिश के बाद फोन लगा. लेकिन शेष भाई से बात नहीं हो सकी. इस तरह से एक दिन बेकार चला गया. इसके बाद कई दिन तक परेशान होता रहा. लेकिन फोन है कि लग ही नहीं रहा था. काफी प्रयास के बाद एक दिन शाम सात बजे फुल पल्स रेट पर ही फोन लगा दिया और संयोग से शेष भाई से बात हो गई. जिसका लंबो लुबाब ये रहा कि अभी कम से कम एक महीने शेष भाई के दर्शन नहीं होंगे. क्योंकि पहाड़ी में ठंड के बाद भी उन्हें एलर्जी हो रही थी. तो इलाहाबाद जहां. भयंकर गर्मी पड़ती है और लाइट भी लंबी कटती है. वहां शेष भाई का क्या होता. कमर कसके मैंने मकान मालिक को अपने पास से किराया थमाया और सस्ता मकान ढूंढने की कोशिश में जुट गया. क्योंकि जिस किराए पर शेष बाबू रह रहे थे. उसमें कम से कम मैं तो नहीं रह सकता था. काफी खोज बीन के बाद सलोरी की काटजू कालोनी में एक मकान मिल गया. नंबर था एलआईजी-16. एक कमरेवाला सरकारी मकान. किराया था चार सौ रुपए बिजली पानी के साथ. शेष भाई के अनुमति से मकान बदल लिया. जिसके बाद बारिश का सीजन शुरू हो गया और शेष भाई फाइनली इलाहाबाद में फिर से प्रकट हुए.
नाम तैयारी का था. लेकिन शेष भाई का वक्त तो रामनगर में बीत रहा था. सो जल्दी-जल्दी किताबों की खरीदारी शुरू हुई. जब से गए थे. तब से आए प्रतियोगिता दर्पण, योजना और कई पत्रिकाओं के सभी अंक खरीदे गए. शेष भाई जरा और लोगों से जुदा थे. सो टीच योरसेल्फ की किताबें भी उन्होंने बड़ी संख्या में जुटा रखी थी. जिनके बारे में इलाहाबादी तैयारी करनेवालों की राय थी. कि टीच योरसेल्फ या तो शुरू से पढ़ों और अगर नहीं पढ़ा. तो मत पढ़ों क्योंकि इनसे संतुलन गड़बड़ा जाता है. लेकिन बैरागी आदमी शेष भाई एक ही घाट पर शेष और बकरी पानी पिलाने पर अमादा थे. सो वो दोनों ही विधाओं से पढ़ रहे थे. यानि पढ़ाई में सबसे अलग थे हमारे शेष बाबू. अगले लेख में शेष बाबू की उपलब्धियां.

1 comment:

astrology of india.com said...

हज़रत-ए-शेष जहाँ बैठ गए, बैठ गए, सौ सौ जूते पड़े उठ न सके लेट गए....