Wednesday, July 28, 2010

TRP में टेली मार्केटिंग

टेलीविजन में काम करनेवालों के लिए बॉस का खौफ कम टीआरपी का ज्यादा होता है...टीआरपी नामक के जीव के बारे में टेलीविजन देखनेवाले ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं...ये एक खास तरह का जीव है...खास लोगों के लिए...ये खास लोग हैं न्यूज चैनलों में काम करनेवाले...जिनके लिए ये किसी दिवास्वप्न से कम नहीं...सोमवार को नया सप्ताह शुरू होने के साथ टेलीविजन चैनलों में काम करनेवालों की धड़कनें बढ़ जाती है...और मंगलवार आते-आते पारा हाई हो जाता है...बुधवार फैसले का दिन होता है...सो इन दिन के क्या कहने...अगर नंबर वन है...तो बल्ले-बल्ले...नहीं तो...?
टीआरपी की मार मालिक से शुरू होती है...जो बॉस से होते...और उनके चमचों से होते हुए आम कर्मचारियों तक पर पड़ती है...टेलीविजन देखनेवाले चंद लोगों ने क्या देखा...इसी से सब फैसला हो जाता है...टॉप ट्वंटी में कौन से प्रोग्राम आए हैं...उन्हीं पर शुरू होती है माथापच्ची...और फिर उसी तरह के प्रोग्रामों को बढचढ़ कर दिखाने का सिलसिला शुरू होता है...।
पहले क्राइम की स्टोरी का बोलबाला था...क्राइम की खबरों में नमक मिर्च लगाकर परोसा जाता था...रिक्रिएशन के नाम पर हसीनाओं का कत्ल होते दिखाया जाता था...या फिर किसी देहाती लड़के से लिपटे-चिपटते...जिसे दर्शक बड़े चाव से देखते हैं...ये खेल अब भी जारी है...ये सबकुछ हो रहा है टीआरपी के नाम पर...जिसके लिए सनसनी क्रिएट करने में भी संकोच नहीं होता...बल्कि ऐसा करने में मज़ा आता है...इसके बार शुरू हुआ...सॉप बिच्छू और जादू टोना का खेल...इसका भी खूब मार्केट चढ़ा...लेकिन अब सबकुछ मिक्स हो गया है...।
बुधवार का दिन है...सो दफ्तर पहुंचते ही...मैंने टीआरपी का मीटर देखना शुरू कर दिया...पिछले लगातार तीसरे सप्ताह जो देखने को मिला है...वो काफी चौकानेवाला है...जिसको दरकिनार भी नहीं किया जा सकता है...अब टीआरपी में टेली मार्केटिंग के कार्यक्रम भी शुमार हो गए हैं...जिनमें सभी मुश्किलें पल भर में आसान होने के नुस्खे दिखाए जाते हैं...इसका क्या संकेत माना जाए...क्या ये कहा जाए...कि आनेवाला दिन टेली मार्केटिंग के कार्यक्रमों के हवाले होगा...क्या अब खबरिया चैनलों में टेली मार्केटिंग के कार्यक्रम दिखाने की होड़ मचेगी...प्राइम टाइम पर सांप-बिच्छू, क्राइम, फिल्मों और राजनीति की खबरों नहीं दिखाई देंगी...नजर आएंगे केवल टेली मार्केटिंग के कार्यक्रम...अगर ऐसा होगा...तो क्या होगा...खुद को टेलीविजन चैनलों का खुदा माननेवाले बड़े-बड़े एंकरों की पेट पर लात पर लात पड़ जाएगी...टिकर वाले पर ब्रेकिंग और ताजा खबर चलाने का दबाव नहीं होगा...केवल अगला कार्यक्रम टीज करना होगा...रन डाउन प्रोड्यूसर और पीसीआरवालों की तो छुट्टी हो जाएगी...काम केवल एमसीआरवाले ही चला लेंगे...चाय की चुस्कियों के बीच टेली मार्केटिंग का आधा या एक घंटे का टेप वीटीआर में घुसेड़ देंगे और फिर निश्चिंत हो जाएंगे...टिकर चलानेवाले को अगले टेली मार्केटिंग के कार्यक्रम को टीज करना होगा...बताना होगा कि शीला या शकीला की छरहरी काया का राज क्या है...देखिए...फलां-फलां...टेली मार्केटिंग कार्यक्रम में...इसमें सबसे ज्यादा फायदा खबरिया चैनलों के मालिकों को होगा...रंग लगेगी ना फिटकरी रंग चोखा आएगा...भारी-भरकम स्टाफ से फुर्सत मिलेगी और चंद लोगों में काम हो जाएगा...कार्यक्रमों के लिए पैसे खर्च नहीं...बल्कि टेली कार्यक्रमों से पैसों की कमाई होगी...।
ऐसे खबरों पर गला फाड़कर चिल्लानेवाले बड़े-बड़े एंकरों का क्या होगा...कैमरे पर दिखने का आदत हो...सो कैसे चलेगा उनका काम...क्या वो खुद को आम लोगों की तरह ढाल पाएंगे...कैसे वो दूसरों से खुद को अलग दिखाएंगे...आखिर क्या होगा रास्ता...तो भैया हम बताते हैं...किसान और उसकी धनिया का रूपधर कर समाचार पढ़नेवाले एंकर यहां भी और लोगों से आगे ही निकलेंगे...और वो जल्द ही अपने को ढाल लेंगे...टेली मार्केटिंग के रंग में और शुरू हो जाएंगे...उत्पादों की खासियत बताने में...।

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