Monday, July 26, 2010

सरकारी डेंगू प्रजनन केंद्र...?

प्रशासन के हाल भी अलबेले हैं. अभी तक सुना था कि पहले गड्ढा खोदा जाता है और फिर उसे भर दिया जाता है. भरने के बाद फिर खोदा जाता है. ये सिलसिला लगातार चलता है. नोएडा और दिल्ली से सटे इंदिरापुरम में इससे पहली बार रू-ब-रू भी हो रहा है. कालोनी को सुंदर बनाने के लिए तरह-तरह की रेलिंग और कवायद जारी है. इसमें मानवीय पहलू का ख्याल बिल्कुल नहीं रखा जा रहा है. सड़क के बीच पड़े लगाने के लिए जगह छोड़ी गई थी. पहले उसमें ट्रकों से लाकर मिट्टी डाली गई. जिससे सड़क की हालत बिगड़ी. जब मिट्टी पड़ गई. तो पेड़ लगाने का काम शुरू हुआ. यहां तक को ठीक था. पेड़ ठीक से लगे भी नहीं थे. उस जगह को फिर से खोदा जाना शुरू हो गया और पाइप डालने के नाम पर पेड़ से सटाकर नाली बनाई जाने लगी. इस दौरान फिर मिट्टी सड़कों पर पहुंची और सैकड़ों पेड़ों की बली चढ़ी. बात यहीं तक नहीं है. अब फिर से कुछ और काम चल रहा है और सड़क के बीच की पट्टी को खोदा जा रहा है. आखिर इसकी पहले प्लानिंग क्यों नहीं होती है. कब तक चलेगा. गड्ढे खोदने और उनको पाटने का सिलसिला.
ये तो बात रही गड्ढे खोदने और पाटने की. अब बात विकास के नाम पर शहर को पत्थरों को पाटने की कोशिश की. सड़क के किनारे पहले खाली जमीन थी. बरसात के दिनों में इसके जरिए पानी जमीन के अंदर चला जाता था और बारिश के कुछ समय बात ही ये पानी को सोख लेती थी और रहा सहा पानी नाली के जरिए निकले जाता था. लेकिन अब खाली जगहों पर सीमेंट से बने पत्थर लगा दिए गए हैं. जिनसे बारिश का पानी जमीन में जाने की गुंजाइश ही नहीं बची है. ये हाल एक जगह का नहीं है. पूरे इंदिरापुरम कालोनी का है. हाल ये होता है कि अभी बमुश्किल दो तीन-दिन बारिश हुई है. वो भी काफी कम. लेकिन सड़कों का हाल बुरा है. सड़क के किनारे पानी भरा है. जिसे देखनेवाला कोई नहीं है. पानी साफ है. इसलिए इसमें मच्छर पैदा होंगे और ये मच्छर डेंगू के भी हो सकते हैं. जिनसे हर साल दर्जनों लोगों की जान दिल्ली और एनसीआर में जाती है यानि प्रशासनिक तौर पर सड़कों के किनारे बना दिए गए हैं. डेंगू प्रजनन केंद्र और इससे लोग मरें. तो प्रशासन की बला से. इसकी सुधि लेनेवाला कौन है. सड़कों और गलियों के किनारे डीटीटी का छिड़काव तो पुराने जमाने की बात रही. अब लोग हाईटेक हो चुके हैं और शहर हाईटेक हो चुका है. तो फिर इस तरह के बीमारियों की परवाह किसे है. कम से कम प्रशासन को तो नहीं.

7 comments:

आनंद said...

अच्छा है कोई प्‍लानिंग नहीं की। ब्‍लॉग में तभी तक मजा है जब बिना प्‍लानिंग के बिंदास लिखा जाए। जहाँ ज्‍यादा सोच-विचार होता है वहाँ पढ़ने में मज़ा नहीं आता। ईमानदारी नहीं रह जाती।

तो जमकर लिखो.. हैप्‍पी ब्‍लॉगिंग।

- आनंद

आनंद said...

और कमेंट देने के लिए तमाम तरह के बंधन Word Verification, Comment Moderation वगैरह क्‍यों ऑन कर रखा है? यहाँ कोई गाली देने वाला नहीं आएगा।

- आनंद

जितेन्द्र 'जीतू' said...

आपकी बात से सहमत हूँ. देश में high tech लोग सोच तभी पातें हैं जब वो लैपटॉप के सामने होते हैं.अन्यथा नहीं. ---जितेन्द्र जीतू

जितेन्द्र 'जीतू' said...

आपकी बात से सहमत हूँ. देश में hightech लोग सोच तभी पातें हैं जब वो लैपटॉप के सामने होते हैं.अन्यथा नहीं. ---जितेन्द्र जीतू

खबरों की दुनियाँ said...

अच्छा लेखन है । हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है । सच है उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता । शुभ कामनाएं।
- आशुतोष मिश्र

Jayram Viplav said...

नमस्कार ! आपकी यह पोस्ट जनोक्ति.कॉम के स्तम्भ "ब्लॉग हलचल " में शामिल की गयी है | अपनी पोस्ट इस लिंक पर देखें http://www.janokti.com/category/ब्लॉग-हलचल/

हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति.कॉम "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . अपने राजनैतिक , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक और मीडिया से जुडे आलेख , कविता , कहानियां , व्यंग आदि जनोक्ति पर पोस्ट करने के लिए नीचे दिए गये लिंक पर जाकर रजिस्टर करें . http://www.janokti.com/wp-login.php?action=register,
जनोक्ति.कॉम www.janokti.com एक ऐसा हिंदी वेब पोर्टल है जो राज और समाज से जुडे विषयों पर जनपक्ष को पाठकों के सामने लाता है . हमारा प्रयास रोजाना 400 नये लोगों तक पहुँच रहा है . रोजाना नये-पुराने पाठकों की संख्या डेढ़ से दो हजार के बीच रहती है . 10 हजार के आस-पास पन्ने पढ़े जाते हैं . आप भी अपने कलम को अपना हथियार बनाइए और शामिल हो जाइए जनोक्ति परिवार में !

Shailendra kumar said...

भाइयों, बहुमूल्य कमेंट्स के लिए धन्यवाद...आनंद भाई ज्यादा जानता नहीं कंप्यूटर के बारे में जानते सेटिंग बदल दूंगा...।