Tuesday, August 3, 2010

सुशील मोदी के तेवर देखो...

सुशील मोदी. यानि बिहार में नीतीश के डिप्टी. पार्टी में विरोध के बाद भी डिप्टी सीएम की कुर्सी हथियाने में कामयाब रहे. वित्त मंत्रालय भी सुशील मोदी के पास है. हाल में जो कैग रिपोर्ट में ट्रेजरी से निकासी का मामला आया है. वो भी वित्त मंत्रालय से ही जुड़ा हुआ है. क्योंकि सूबे में जिनता पैसा आता-जाता है. उसका लेखा वित्त मंत्रालय को ही रखना होता है.
मोदी जी गए थे लखीसराय में अपनी पार्टी बीजेपी के कार्यालय का उद्घाटन करने के लिए. वहीं पर कार्यक्रम के दौरान पार्टी के ही एक कार्यकर्ता ने उनसे कैग रिपोर्ट पर सवाल करने की जुर्रत कर दी. फिर क्या था. मोदी जी की त्योरी चढ़ गई और उन्होंने उस कार्यकर्ता को गिरफ्तार करने का निर्देश जारी कर दिया. मौके पर मौजूद पुलिसवालों ने क्या बिसात कि वो हुक्म की नाफरमानी करते. कार्यकर्ता को पुलिसवालों ने हिरासत में ले लिया और बैठा लिया जीप में. ले गए पुलिस थाने. पुलिस थाने में क्या होता है. आप सब लोग जानते हैं. उस पर ज्यादा प्रकाश डालने की जरूरत नही हैं.
जैसे ही युवक को पकड़ कर कार्यक्रम स्थल से बाहर ले गए पुलिसवाले. सुशील मोदी को एनडीए की याद आई और उन्होंने एनडीए के पक्ष में नारेबाजी शुरू कर दी. एनडीए एकता. बाकी काम पार्टी कार्यकर्ताओं ने जिंदाबाद करके कर दी.
मोदी ने जो किया या करवाया. वो ट्रेजरी से अरबों रुपए की निकासी को लेकर सरकार की हो रही किरकिरी की खीझ कही जा सकती है. विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेर रहा है. राज्यसभा तक का कामकाज स्थगित हो रहा है. लेकिन क्या मजाल है कि राज्यसभा में सवाल उठानेवालों पर मोदी जी ऐसा कर सकते हैं. आखिर ये कैसा मानदंड है. क्यों खुलकर मोदी जी और उनकी पार्टी इस मुद्दे पर साफ-साफ नहीं कह रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बच रहे हैं.
आखिर इसके पीछे बात क्या है. ये जनता को बताना चाहिए. क्योंकि आम लोग ये जानना चाहते हैं. जिस तरह से लखीसराय में सच जानने की कोशिश करनेवाले व्यक्ति की जुबान बंद की गई. अगर ऐसा होता रहा. तो इसका संदेश लोगों के बीच में क्या जाएगा. ये सभी जानते हैं. और ऐसे में चुनावी साल में मोदी जैसे लोगों की क्या गति होगी. ये भी शादय किसी के छुपा नहीं है. क्योंकि जनता जिसे सिरे चढ़ाती है. अगर उसको सही जबाव नहीं मिले. तो उतार भी देती है. केवल ये कहने से काम नहीं चलेगा. कि पिछले पांच साल में बहुत काम हुआ है.
अगर हम कहें कि पिछले पांच साल में बहुत पाप हुआ है. तो क्या ये सही हो जाएगा. जब तक की हम अपने तर्क के पक्ष में कुछ ऐसे सबूत नहीं पेश करें. जिन पर लोग विश्वास करें. देश और दुनिया भले ही दूर से मान ले. लेकिन जो लोग रह रहे हैं और स्थितियों का सामना कर रहे हैं. उनसे तो कुछ छुपा नहीं है.

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