Friday, August 13, 2010

शरद की 'गरम' जुबान

शरद यादव जतना दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं. लेकिन इस बेबाकी में शरद की जुबान कई बार ऐसा सच बोल जाती है. जो वक्त की नज़ाकत के हिसाब से ठीक नहीं होती है. दिल्ली में शरद यादव कुछ ऐसा ही कह गए. एक किताब के विमोचन समारोह में शरद पहुंचे थे. भाषण के दौरान शरद कॉमनवेल्थ गेम्स का जिक्र कर बैठे और लगे हाथ उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी शरद बोले. शरद गेम्स के पक्ष में नहीं है. ये बात वो सालों से करते आ रहे हैं.
शरद ने बोलना शुरू किया. तो एसियाड को भी नहीं छोड़ा और कह बैठे की वो भी खेल बहुत अच्छे नहीं थे. घोटाले के दौरान शरद दिल्ली की बात करने लगे और कहने लगे कि यहां मैं छत्तीस साल से हूं. जो भी घोटाला करता है. वो पचा जाता है. कभी पकड़ा नहीं जाता है. शरद से विमोचन समारोह में आए लोगों ने इस संबंध में हामी भरवाई. क्या शरद यादव सही कह रहे हैं या फिर दिल्ली की खिल्ली उड़ा रहे हैं. अगर गौर करें. तो पिछले सालों में कोई ऐसे बड़े आदमी का उदाहरण नहीं है. जो दिल्ली का हो और धांधली करने के बाद पकड़ा गया हो. लेकिन शरद सच है तो क्या सही है. क्या उन्हें सभी दिल्लीवालों पर ऐसे उंगली उठानी चाहिए.
दिल्ली में रहनेवाले सभी लोग तो ऐसा नहीं कर सके. आखिर धांधली करने के लिए भी हैसियत चाहिए. कोई सड़क पर भीख मांगनेवाला और झुग्गी झोपड़ी या दिनभर मजदूरी में हाड़तोड़ मेहनत करनेवाला तो धांधली कर नहीं सकता. फिर एक कहावत है. मूस कितना भी मोटा होगा लोढ़ा से ज्यादा नहीं हो. अगर एक बार को मान भी लिया जाए कि गरीब आदमी धांधली करेगा. तो कितने की. हजार-दो हजार चार हजार की. करोड़ो और अरबों तक तो नहीं पहुंचेगा. दस रुपए की चीज दो सौ में तो नहीं खरीदेगा. ये काम तो कुछ ज्यादा ही गुड़ी लोग कर सकते हैं और ये उनके ही बूते की बात भी है.

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