Tuesday, August 10, 2010

किस राह पर बिहार की राजनीति

कोशी प्रमंडल में बिहार विधानसभा की सबसे ज्यादा सीटें हैं. इसी वजह से इस क्षेत्र पर सभी राजनीतिक दलों की नजर है. आनंद मोहन इस क्षेत्र के बड़े नेताओं में शुमार हैं और इस समय गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैय्या हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. सहरसा जेल में बंद बाहुबली आनंद मोहन इन दिनों कोशी की राजनीति की धुरी बने हुए हैं. सभी राजनीतिक दल उन्हें अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या बिहार के नेताओं ने पिछले साल के लोकसभा चुनाव से कोई सबक नहीं लिया है. जब वोटरों ने सिरे से बाहुबलियों को नकार दिया था. लेकिन अभी तक बाहबुलियों की पूछ अभी तक कम नहीं हुई है. जब से विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट तेज हुई है. राजनीतिक दल बाहुबलियों के सामने नतमस्तक नजर आ रहे हैं और उनके नेता लगातार बाहुबलियों को अपनी ओर मिलाने में लगे हैं. इसे राजनीति का कौन का चेहरा कहा जाए. वो भी तब जब वोटर बाहुबलियों को नकारने में लगे हैं. आखिर इसकी जमीनी सच्चाई क्या है. क्या राजनीतिक दल वोटरों की धारा से उलट बहना चाह रहे हैं. क्या उन्हें लग रहा है कि बाहुबलियों से ही बात बनेगी. अगर ऐसा होता है. तो बिहार जिस ढर्रे पर आगे बढ़ा था. वहीं, पर फिर से पीछे चला जाएगा. यानि कुछ सालों पहले जैसी ही स्थिति हो जाएगी. क्या इसे स्वीकार करने के लिए लोग तैयार हैं.
इस मुहिम में बिहार का कोई एक दल शामिल नहीं है. आरजेडी और जेडीयू प्रमुख दल हैं. इसलिए इन्हीं की चर्चा ज्यादा हो रही है. शुरुआत जेडीयू से हुई थी. जिसने सीमांचल के दबंग नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन को अपने साथ किया. इसके बाद आरजेडी ने प्रभुनाथ को अपने साथ जोड़कर जेडीयू को जवाब दिया. जेडीयू ने आनंद मोहन की ओर भी तुरप का पत्ता फेंका था. खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आनंद मोहन के गांव गए थे और उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए ये भी कहा था कि अगर आनंद मोहन जेडीयू में आते हैं. तो किसी को क्या परेशानी है. इसी के बाद लालू प्रसाद के दूत बनकर रामकृपाल आनंद मोहन से मुलाकात करने के लिए जेल पहुंचे थे. इसके बाद ददन पहलवान ने आनंद मोहन को साथ लाने की कोशिश की. अब फिर रामकृपाल ने आनंद मोहन से मुलाकात की है. इस बार की मुलाकात साढ़े तीन घंटे की थी. माना जा रहा है कि आनंद मोहन आरजेडी के साथ जा सकते हैं. अगर ऐसा होता है. तो सवाल वही हैं कि आखिर बिहार की राजनीति किस राह पर जा रही है.

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