Saturday, August 7, 2010

'कुछ कर दिखाना है'

अमरेश राय इन दिनों दिल्ली के पॉश इलाके साउथ एक्सटेंशन-2 में रहते हैं. वहीं, एक भाई साहब के साथ मिलकर अपनी कंपनी. जो छात्रों के विदेश में पढ़ने भेजती है. उनके व्यक्तित्व का विकास करती है. उसे सिरे चढ़ाने की कोशिशों में लगे हैं. भाई अमरेश के मन में छटपाहट है. देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरने की. जितनी बार बात होती है. ये टीस उनकी बातों में झलकती है. देश और दुनिया में क्या चल रहा है. वो उस पर पैनी नजर रखते हैं और जैसे ही कोई बात को और विस्तार में समझना होता है या फिर किसी चीज पर राय लेनी होती है. तुरंत फोन खटखटा देते हैं. फिर बेबाक राय का सिलसिला शुरू होता है. हालांकि इससे समाज और देश का कोई भला नहीं होता है. लेकिन उसकी भूमिका में एक कदम और जरूर जुड़ता है. ऐसा मेरा मानना है.
अमरेश राय से मुलाकात इलहाबाद में 1992 में हुई. बस्ती के खलीलाबाद से मेडिकल की तैयारी का सपना लेकर इलाहाबाद आए अमरेश एक कोचिंग सेंटर के हॉस्टल में रहते थे. वहीं, पास ही हमारे कुछ अन्य मित्र थे. जिनका राय साहब से आते-जाते परिचय हो गया था. एक दिन हम भी उन्हीं लोगों के साथ राय साहब के कमरे पर पहुंचा और फिर वहीं, से मुलाकात और एक-दूसरे के बारे में जानने का सिलसिला शुरू हुआ. जो अभी तक जारी है. हम एक-दूसरे को अब भी समझ रहे हैं.
मेडिकल की पढ़ाई में मन नहीं लगा. मन से उद्यमी राय साहब ने इलाहाबाद से दिल्ली के लिए उड़ान भर दी. दिल्ली में रहते हुए राय साहब ने कई काम किए. उस समय शायद नियति को मंजूर नहीं था. कि राय साहब दिल्ली में तरक्की करें. सो पेट की गंभीर बीमारी का शिकार हो गए और जो ताना बाना बुना था. वो एक झटके में खत्म हो गया और राय साहब फिर गोरखपुर की पथरीली जमीन पर पहुंच गए. वहीं, से फिर नया दौर शुरू हुआ. शिक्षा के क्षेत्र में कुछ कर गुजरने का. इसमें राय साहब सफल भी हुए और जल्द गोरखपुर में अंग्रेजी भाषा पढ़ानेवाले अच्छे शिक्षकों में से एक बन गए. लेकिन राय साहब की मंजिल गोरखपुर नहीं थी. सो हैदराबाद पहुंच गए. जहां से उन्होंने छात्रों को विदेश में पढ़ाई के लिए भेजने का सिलसिला शुरू किया. जो अभी तक जारी है और दिनों दिन उसका करवां बढ़ता जा रहा है. राय साहब भले ही अभी तक अपनी पहचान उस स्तर पर नहीं बना पाए हैं. जिसके लिए वो प्रयासरत हैं. क्योंकि इसके आड़े में आ रहा है धन. जो अभी उनके पास नहीं है. लेकिन इतना जरूर है कि शाम को भूखे नहीं सोना पड़ता है. अपने साथ परिवार और आसपास के लोगों का खासा ख्याल राय साहब रखते हैं. उनमें से एक मैं भी हूं. जो उनकी कृपा को शायद अपने अंतिम समय तक नहीं भुला सकता. ये तो व्यक्तिगत बात हुई. लेकिन जुड़ी राय साहब के सरोकार से है. इसलिए इसका उल्लेख जरूरी था.
राय साहब के मन में देश के लिए कुछ कर गुजरने का कीड़ा चल रहा है. जिसका जिक्र मैं पहले भी कर चुका हूं. आज सुबह की ही बात है. राय साहब का फोन आया और कहने लगे. कि बॉस मैं शांति से इस दुनिया से नहीं जाना चाहता हैं. ऐसा कुछ करना चाहता हूं. जिसके बारे में लोग सोचें और बोले. ऐसा काम जो अच्छा हो और देश को आगे बढ़ाए. ये सब राय साहब अन्य लोगों की तरह अमर होने के लिए नहीं कह रहे हैं. लेकिन उनकी एक सोच रही है. कि कुछ करना चाहिए. पर अभी तक राय साहब को वो मंच नहीं मिला है. जिसकी तलाश उन्हें है. लेकिन जिस तरह से वो अपने मिशन में जुटे हैं. हमें उम्मीद ही नहीं...विश्वास है कि उन्हें जल्द ही वो मिलेगा.

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